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Saturday 23 January 2021

गजल-चोवा राम 'बादल'

 गजल-चोवा राम 'बादल'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


बाग बगिया हें सजे बसंत के बहार हे

मस्त हे हवा चलत मतौना खेत खार हे


कोन हे सुभाष कस मरय खपय जे देश बर

राजनीति अब सिरिफ तो लागथे व्यपार हे


आदमी के काम सब हवय अबड़ निसाचरी

हाय राम हाय राम धरती के पुकार हे


जिंदगी मा धूप छाँव दु:ख सुख लगे रथे

 कमती हे अँजोर हा डपट के अंधियार हे


नइ खिराही तोर धन भुखाय ला खवाय मा

रोटी दे खवा भिखारी हा खड़े दुवार हे



छूट ले गा भाई सेवा करके  करजा ला अपन

देहे दाई हा जनम ला दूध के उधार हे


कहना कन्या ला सगा सहीं  गलत हे मान्यता

सोरियाथे बाप हा वो बेटी बर दुलार हे


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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