गजल- अजय अमृतांशु
बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़
फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
212 1212 1212 1212
हो जथे कभू कभू जे गलती वोला जान दे।
छोड़ के जी भेदभाव तँय सबो ला मान दे।
अब गरीब झन सुतय जी भूखे पेट देश मा ।
खाय देहू मिल सबो उहू ला रोटी खान दे।
काम सब अपन करव रखव कभू न द्वेष ला।
चारी चुगली झन सुनव कभू अपन न कान दे।
दाई अउ ददा दुनो इलाज बिन मरत हवय।
काम धाम होत रइही गोली ला तो लान दे।
माँहगी जमाना कइसे होही सब गुजारा अब।
खरचा हे बड़े बड़े गा तनखा ला तो आन दे।
छोड़ पाप सॉंग देशभक्ति ला सुनव सबो।
हे स्वतंत्रता दिवस जी राष्ट्रगीत गान दे।
आज बेरा हे "अजय" ले करजा छूट देश के।
मोह माया छोड़ तैंहा देश बर परान दे।
अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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