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Friday 29 January 2021

गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार

 गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


पाठ प्रेम के सिखाथे गीता अउ कुरान गा,

प्रार्थना अजान पूजा मा भरे इमान गा ।।


कोनो धर्म नइ करे सुन आदमी म भेद रे,

ढोंग बाज मन चलाथे आड़ मा दुकान गा ।।


जात पाँत के लड़ाई नइ भलाई काकरो,

आपसी के भेद छोड़ एकता के गान गा ।।


होथे का अनेकता म एकता इहाँ परख,

संग रहिथे सिक्ख,बौद्ध ,हिन्दू मुस्लमान गा।।


ऊँच नीच भेद छोड़ एक होके तो रहव,

आही संगी मानले तभे नवा बिहान गा।।


क्रांति के मसाल भभका तैं बनेच जोर से,

रूख के अँकड़ ल तो निकालथे तुफान गा।।


विश्व देंखे घूम घूम पाक चीन जर्मनी,

सबले ऊँचा विश्व मा तो भारती के शान गा ।।


दुर्गा शंकर ईजारदार

सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)

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