गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*
*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*
*221 1221 1221 122*
चारा के बिना मछरी गरी मा लहे कइसे।
धन कोड़िहा के घर मा भराये रहे कइसे।
छानी ला सजाये मा ठिहा ठौर टिके नइ।
नेवान जे घर के बने तेहा ढहे कइसे।
बड़ बाढ़गे हे गरमी हवा मा नही नरमी।
बिन पेड़ पतउवा के पवन जुड़ बहे कइसे।
घर गाँव गली खोर मा रोवत हवे बेटी।
अतलंग जमाना के सदा वो सहे कइसे।
माँ बाप के करजा हवे बेटा के उपर बड़।
बेटा ला जतन बर ददा दाई कहे कइसे।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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