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Saturday, 8 August 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*

मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन

1212 212 122 1212 212 122

अपन अपन ले सबे बकत हे, महूँ हा मोरे सिलाय हावै।
अबक तबक बस परान उड़ाही, जहर जमाना पिलाय हावै।

बिछे हवै काँटा खूँटी पथ मा, गिरत उठत बस चलत बढ़त हौं।
परे हे फोरा दिखे ददोरा, लहू बहत पग छिलाय हावै।2

करौं बिगारी खा खा के गारी, ना मैं भिखारी ना हे चिन्हारी।
भला अपन मनके मैं चलौं का, चलाय जउने खिलाय हावै।3

दुसर बिना कब उदर हा भरही, करम के लेखा कइसे सुधरही।
निगल सकौं ना उगल सकौं मैं, पता नही का लिलाय हावै।4

हरौं कमैया तभो ले भैया, उबुक चुबुक करथे मोर नैया।
पटक पटक मारे धन खजाना, गजब रे गोल्लर ढिलाय हावै।5

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

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