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Monday, 10 August 2020

गजल -दिलीप वर्मा

 गजल -दिलीप वर्मा

बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू' मुखल्ला 
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाऊलुन
1212 212 122 1212 212 122

लहू बहा के मिले अजादी, बिगड़ न जावय सम्हाल राखव। 
नजर गड़ाये हवय परोसी, न लूट खावय सम्हाल राखव।

बना के भाई मया लुटाये, मगर दगा वो करे हमेसा। 
भले बटे एक बार धरती, न फिर बँटावय सम्हाल राखव।

बबा बनाये रहिस घरौंदा, उजाड़ डारिस हवय ग नाती।
लुटा लुटा के कमाये धन ला,मजा उड़ावय सम्हाल राखव। 

कटात जावत हे पेड़ भारी, उजाड़ जंगल वीरान होगे।
दलाल भुुइयाँ खुसर के देखव, न घर बनावय सम्हाल राखव। 


दसा बिगाड़त हे चंद मनखे, दिशा सुधारे सबो ल परही। 
बनत रहिन हे जे चोर राजा, न फेर आवय सम्हाल राखव।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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