Total Pageviews

Friday, 1 January 2021

गज़ल- अजय अमृतांशु

 गज़ल- अजय अमृतांशु


*बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़*

*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन*

1222   1222    122


अपन पइसा ल गठिया के धरे कर।

हवय चोरी के डर थोरिक डरे कर।


घुमत ठलहा हवस काबर बताना,

कभू तो काम धंधा ला करे कर। 


ठिकाना नइ हे जिनगी के समझ ले,

कभू तो ककरो दुख पीरा हरे कर। 


सबो कोती लगे इरखा के आगी।

कभू ये आँच मा तैं झन जरे कर।


चरत हे देश ला नेता सबो मिलके।

तहूँ काबर चुपे हावस चरे कर।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

No comments:

Post a Comment

गजल

 गजल 2122 2122 2122 पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खा...