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Sunday 10 January 2021

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़

मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


1212 1212 1212 1212


बने बनाय ला बिगाड़ दे बसे उजाड़ दे। 

चलत हवय का मन बता खड़े तको उखाड़ दे।  


पता नही का मन भरे तिलिल मिलिल करत रहे।

पढ़त रहे टुरा बने तभो कका ते झाड़ दे। 


भटक गये डगर बहुत पकड़ डगर म लान जी। 

कहूँ न माने बात ता तनिक कका दहाड़ दे। 


बहुत गरब भरे पुटानी मार के चिढात हे। 

उठा-उठा पटक बला समर म तँय पछाड़ दे।


लड़े मरे के साध हे लगे ये चीन ला बहुत। 

उठा के बौना ला पटक जमीन मा ते गाड़ दे।  


तुलुल मुलुल करत हवय ये देख पाक ला तको। 

पकड़ के मार काट दे नही ते चीर फाड़ दे।


बहुत खुसी रहिस हवय मिले जे नेवता 'दिलीप'।

पता नही का सोंच तँय बलाय के लताड़ दे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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