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Sunday, 10 January 2021

गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़*


*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*1212 1212 1212 1212*


जनम जनम ये लोक मा, रही धरा के देवता।

जनम दिये तिही हरे, सही धरा के देवता।1


दया मया पा हाँसही, बने करम मा नाँचही।

करम रही गलत त, टोकही  धरा के देवता।2


खवाय हे पियाय हे, उठाय हे सुताय हे।

तभो कभू कहे कहीं, नही धरा के देवता।3


कहूँ दिखाही आँख पूत, खाही चैन सुख ल लूट।

मता सकत हवै, दहीं मही धरा के देवता।4


कपूत पूत बन जही,बबूल बर हा बन जही।

फसल तभो हाँ हाँस, रोपही धरा के देवता।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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