ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी
बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ
मुफाईलुन फाइलातुन मुफाईलुन फेलुन
1212 1122 1212 22
बना डरे का अपन रूप आज मनखेमन
हे आँय बाँय करत रोज काज मनखेमन
झपट दिही वो पता नइ चलय कतक बेरा
बने फिरत हे इहाँ देख बाज मनखेमन
बने रे सोच समझ संग गोठ कर कखरो
समे पा खोल दिही तोर राज मनखेमन
भुलात कतको हे संस्कार अपन संस्कृति
करय न छोट बड़े के लिहाज मनखेमन
लगय बिरान नही आज अपने अपने बर
अबड़ गिरात हवय 'ज्ञानु' गाज मनखेमन
ज्ञानु
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