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Wednesday, 23 September 2020

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ

मुफाईलुन फाइलातुन मुफाईलुन फेलुन

1212 1122 1212 22


बना डरे का अपन रूप आज मनखेमन

हे आँय बाँय करत रोज काज मनखेमन


झपट दिही वो पता नइ चलय कतक बेरा

बने फिरत हे इहाँ देख बाज मनखेमन


बने रे सोच समझ संग गोठ कर कखरो

समे पा खोल दिही तोर राज मनखेमन


भुलात कतको हे संस्कार अपन संस्कृति

करय न छोट बड़े के लिहाज मनखेमन


लगय बिरान नही आज अपने अपने बर

अबड़ गिरात हवय 'ज्ञानु' गाज मनखेमन


ज्ञानु

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