गजल- मनीराम साहू मितान
बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महजूफ़
मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फेलुन
1212 1122 1212 22
बने हवय वो मदारी नचात हाबय जी।
दिखा दिखा डर सबला फॅसात हाबय जी।
अड़े हवय सच हे मोर बात मन जम्मो,
अपन भुजा बल अॅइठत दिखात हाबय जी।
बने करम नइ जानय करत रथे चारी,
डुबक डुबक बड़ गंगा नहात हाबय जी।
हवय मगन नित अबड़े बुता करै बाबू,
लहू चुरो खुद किस्मत जगात हाबय जी।
कमा कमा के सिहरथे किसान हा देखव,
बजार जा बड़ सबले ठगात हाबय जी।
नॅगत उल्होत हे देखव लबार के जुग हे,
समे उलट गय सच्चा लजात हाबय जी।
धरम निभात कहाॅ हे मितान तक हा अब,
लगा कलंक बनौकी बनात हाबय जी।
- मनीराम साहू मितान
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