गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212
झरना बने झरथे नदी।
सागर चरण परथे नदी।1
गाँव अउ शहर तट मा बसा।
दुख डर दरद दरथे नदी।2
बन बाग बारी सींच के।
आशा मया भरथे नदी।3
चंदा सितारा संग मा।
बुगबाग बड़ बरथे नदी।4
नभ तट तरू के दाग ला।
दर्पण बने हरथे नदी।5
बढ़ जाय बड़ बरसात मा।
गरमी घरी डरथे नदी।6
धर कारखाना के जहर।
जीते जियत मरथे नदी।7
तरसे खुदे जब प्यास मा।
दुख दाब घिरलरथे नदी।8
देथे लहू तन चीर के।
दुख देख ओगरथे नदी।9
जाथे जभे सागर ठिहा।
आराम तब करथे नदी।10
खुद पथ बना चलथे तभे।
तारे बिना तरथे नदी।11
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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