गज़ल- अजय अमृतांशु
*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
*2122 2122 2122*
एक ले बड़ एक ये संसार मा हे।
गोठियाथे दारु छोड़व बार मा हे।
जनता के कइसे भला हो सोंच तैंहा।
जम्मो लुच्चा देख तो सरकार मा हे।
रौंदे ले फुलवारी ला कइसे बचाबों।
लूटे बर रखवार इंतेजार मा हे।
कांटा चारो कोती बगरे हे डगर मा।
जम्मो अब रखवार अत्याचार मा हे।
फूल फुलवारी म लगथे देख सुग्घर।
बाग बँचतिस दोष तो रखवार मा हे।
खेल जब होथे अपन के बीच मा तब।
जीत ले जादा मजा तो हार मा हे ।
पार होबे कइसे बिन गुरु के "अजय" तैं।
लहरा मा डोंगा फँसे मँझधार मा हे।
अजय "अमृतांशु"
भाटापारा,छत्तीसगढ़
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