गजल- दिलीप कुमार वर्मा
बहरे रमल मुसद्दस सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122
मोर अँगना मा तुँहर का काम हावय।
मँय चिंहत नइ हँव तुँहर का नाम हावय।
जा कभू बाजार तब तो जान पाबे।
खाय के सामान के का दाम हावय।
आज चूल्हा नइ जलय कतकोन घर मा।
काम बिन अब पेट ला आराम हावय।
जर जही चमड़ी निकल झन आज बाहिर।
आग उगले कस लगत बड़ घाम हावय।
चाँद जल करिया जही ओ देख तोला।
दूध जइसन तोर गोरी चाम हावय।
रात भर बइठे रहे महफ़िल सजा के।
कोन बर बाँचे बता ये जाम हावय।
राह थोरिक देख लेथन अउ कका के।
दिन निकल गे हे भले पर शाम हावय।
रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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