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Monday 28 September 2020

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

 

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212 2212 


नेकी के सुग्घर काम कर ।

जग मा अपन तैं नाम कर।


संघर्ष जिनगी भर हवय।

झन तैं चिटिक आराम कर। 


ट्रैफ़िक हवय बड़ जोर के।

रद्दा ल झन तैं जाम कर।


झन दाब कोनो झूठ ला। 

सच्चाई ला अब आम कर।


जल्दी पहुँचना हे शहर। 

बेरा बुड़त झन शाम कर।


दाई ददा घर मा हवय ।

तैं घर ल चारो धाम कर ।


सम्मान ले जीना हवय । 

इज्जत ला झन नीलाम कर।


जिनगी "अजय" बस युद्ध ये।

हर क्षण कहय संग्राम कर ।


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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