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Monday 28 September 2020

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

बहरे रजज मुरब्बा सालिम

मुस्तफ़इलुन  मुस्तफ़इलुन

2212 2212


दुनियाँ के कइसन ढंग हे

छिन छिन मा बदलत रंग हे


खुश नइ दिखय कोनो इहाँ

जिनगी मा सबके जंग हे


अंतर हे करनी कथनी मा

मति देख सुनके भंग हे


मन चंगा हे जेखर सदा

ओखर कठौती गंग हे



दुख के बखत चलथे पता 

 हे कोन दुरिहाँ संग हे


ज्ञानु

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