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Saturday, 26 September 2020

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

 

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212 2212


तलवार ला तैं धार कर ।

बैरी ले पहिली वार कर ।


आँखी देखाथे जेन हा।

वोकर ले आँखी चार कर।


के दिन हवय जीना इहाँ ।

सब ले बने व्यवहार कर।


करथस नशा बेसुध हवस।

बरबाद झन घर द्वार कर।


माटी के करजा छूट तैं ।

झन देश के व्यापार कर।


फलफलहा कोनो भाय ना।

जब गोठ करथस सार कर। 


हावय गलत करना मया।

गलती "अजय"सौ बार कर। 


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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