गजल- अजय अमृतांशु
*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212
तलवार ला तैं धार कर ।
बैरी ले पहिली वार कर ।
आँखी देखाथे जेन हा।
वोकर ले आँखी चार कर।
के दिन हवय जीना इहाँ ।
सब ले बने व्यवहार कर।
करथस नशा बेसुध हवस।
बरबाद झन घर द्वार कर।
माटी के करजा छूट तैं ।
झन देश के व्यापार कर।
फलफलहा कोनो भाय ना।
जब गोठ करथस सार कर।
हावय गलत करना मया।
गलती "अजय"सौ बार कर।
अजय "अमृतांशु"
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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