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Wednesday 23 September 2020

गजल- दिलीप कुमार वर्मा बहरे रमल मुसद्दस सालिम

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुसद्दस सालिम 

फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन। फ़ाइलातुन 

2122  2122  2122   


मोर दाई तोर आशिष पाय हावँव। 

तोर किरपा ले जगत मा छाय हावँव। 


कोन मोला मार पाही अब बता दे। 

मँय कवच पहिरे लड़े बर आय हावँव। 


शेर कस गरजत रथौं बाहिर म मँय हर। 

सच कहँव बाई के आगू गाय हावँव। 


देखथौं कतकोन के आँखी दिखे नइ। 

ओखरो बर आज चश्मा लाय हावँव।


मँय दगा नइ कर सकवँ माटी ले संगी।

एख़रे देहे सदा मँय खाय हावँव।


कोढ़िया कतकोन मुँह ला फार बइठे।

ओखरो बर धान मँय उपजाय हावँव।  


मोर धरती मा कदम रखबे समझ ले। 

तोर बर बारूद मँय बिछवाय हावँव।


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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