गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
*2122 2122 2122*
देखा सीखी बाय लागे आज सबला।
कोन जन ये काय लागे आज सबला।1
चुप रहैया मनखे सिधवा नइ सुहाये।
बिगड़े मनखे गाय लागे आज सबला।2
चोचला बड़ बाढ़ गेहे चारो कोती।
संझा बिहना चाय लागे आज सबला।3
पथरा के दिल हे दया के नाम नइहे।
कुछु करे नइ हाय लागे आज सबला।4
साग भाजी घर मा हे ना घर मा मुर्गी।
दार तक बिजराय लागे आज सबला।5
सिर झुकाना सबके बस मा हे बता का।
भीख तक व्यवसाय लागे आज सबला।6
नाम होही काम करले खैरझिटिया।
तोर सपना आय लागे आज सबला।7
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
No comments:
Post a Comment