Total Pageviews

Thursday, 24 September 2020

ग़ज़ल - मनीराम साहू मितान

 ग़ज़ल - मनीराम साहू मितान


बहरे रमल मुसद्दस सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122  2122 2122


पाप के रद्दा धरे हे आज मनखे।

लूट खावत हे बने अब बाज मनखे।


हे करत घाटा नॅगत हे जेन अपने,

हे गिरावत आज मुड़ मा गाज मनखे।


कर चलत हे देख आधा देह उघरा,

काय होगे नइ करत हे लाज मनखे।


होय परजा ला कुछू नइ चेत हाबय,

बस‌ अपन बर हे करत अब राज मनखे।


कोलिहा बघवा कभू नइ हो सकय जी,

हे बने सरदार तन ला साज मनखे।


अउ कतिक गिरही कुछू ला नइ गुनय जी,

हे करत पी मंद खिकहा काज मनखे।


तेज गाड़ी के भगाई हे ग फैशन,

गय बदल अब गा मनी अन्दाज मनखे।


- मनीराम साहू मितान

No comments:

Post a Comment

गजल

 गजल 2122 2122 2122 पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खा...