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Wednesday 16 September 2020

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब महफूफ़ महफूफ़ महजूफ़ 

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफाइलु फ़ाइलुन

221  2121  1221  212 


घर मा हमर खुसर के ओ हमला नचात हे। 

राजा बने हमर बड़ा आँखी दिखात हे। 


अइसन करव उपाय ओ इँहचे ले भाग जय। 

लूटत हवय गरीब ला डण्डा उठात हे।


परदेशिया इहाँ बसे झोरत हे लोग ला। 

लालच दिखा दिखा के सबो खाय जात हे। 


उलझाके हम सबो ल ओ रोटी ग सेंकथे।  

हलवा अपन दहेल के चटनी चटात हे।


फोकट के ओ खवा के बना दे हे कोढ़िया।  

दारू के लत लगा के ओ निर्बल बनात हे। 


रचानाकार-- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़


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