गजल-दिलीप कुमार वर्मा
बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब महफूफ़ महफूफ़ महजूफ़
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफाइलु फ़ाइलुन
221 2121 1221 212
घर मा हमर खुसर के ओ हमला नचात हे।
राजा बने हमर बड़ा आँखी दिखात हे।
अइसन करव उपाय ओ इँहचे ले भाग जय।
लूटत हवय गरीब ला डण्डा उठात हे।
परदेशिया इहाँ बसे झोरत हे लोग ला।
लालच दिखा दिखा के सबो खाय जात हे।
उलझाके हम सबो ल ओ रोटी ग सेंकथे।
हलवा अपन दहेल के चटनी चटात हे।
फोकट के ओ खवा के बना दे हे कोढ़िया।
दारू के लत लगा के ओ निर्बल बनात हे।
रचानाकार-- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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