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Wednesday, 23 September 2020

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


मया के अर्थ हा देखव बदल चुके हावय।

सुवा जिया मा सुवारथ के पल चुके हावय।1


लगाय कोन हा घायल के घाव मा मरहम।

बइद घलो तो जहर धर निकल चुके हावय।2


अगिन बरत हवे बम्बर सबे डहर छल के।

सबर बरफ सही सबके टघल चुके हावय।3


का हथकड़ी घलो हत्यारा हाथ मा लगही।

अवइया फैसला तक तो टल चुके हावय।4


भरोसा करबे भला कइसे कखरो उप्पर मा।

माँ बाप ला घलो तो पूत छल चुके हावय।5


का बाँच पाही मया के फसल कहूँ कोती।

अगिन दुवेश के सब खूँट जल चुके हावय।6


बता चढौ़ भला कइसे मचान मा मैंहर।

टिकाय सीढ़ी घलो तो फिसल चुके हावय।7


ठिहा ठिकाना कहाँ हे जियत मनुष मन बर।

मशान घाट मा नेंवान डल चुके हावय।8


जलाय चल बने आशा के जुगनू जी जीतेन्द्र।

डहर दिखइया सुरज हा तो ढल चुके हावय।9


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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