ग़ज़ल - मनीराम साहू मितान
बहरे रमल मुसद्दस सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122
बड़ पदोथे रोज के बादर बदलगे।
स्तर चढ़त हे देख जी सागर बदलगे।
अब भुलावत हें सगे रिश्ता नता ला,
आदमी अन्दाज ले आगर बदलगे।
डारथच गा खाद युरिया तैं नॅगत के,
ठोस होगय खेत सब गादर बदलगे।
अब नॅदागय खेती के पुरखा चलागत,
यंत्र सब जुन्ना फसल नाॅगर बदलगे।
काम चिटको अब बने नइ होत हाबय,
मन लगा के नइ करॅय चाकर बदलगे।
रात दिन बड़ फोरथे जी कूद खपरा,
नइ भगॅय उॅन खार सब माकर बदलगे।
भागथे उल्टा पवन जे कष्ट पाथे,
सोच झन तैं अब मनी काबर बदलगे।
- मनीराम साहू मितान
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