गजल-अरुण कुमार निगम
*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
*2122 2122 2122*
देउँता बइठे रहिन पुरखा के घर मा
सुख दुवारी मा रहिस खपरा के घर मा।
चल अनाथालय उहें दिन काटबो हम
अब ठियाँ रहिगे कहाँ बेटा के घर मा।
घर बड़े होगे तहाँ तारा लटक के
सुख मया जम्मो रहिस तइहा के घर मा।
सोच के करबे बिदा छेरी ला भाई
के दिना बाँचे रही बघुवा के घर मा।
लॉकडाउन मा कमइया मन के हालत
देख, बइठे हे "अरुण" बइहा के घर मा।
*अरुण कुमार निगम*
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