गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212
सुक्खा नदी अउ ताल हे
लगथे अकाली साल हे।
पानी बिना जिनगी कहाँ
सब जीव मन बेहाल हे।
कटगे सबो वन पेड़ अब।
ठुड़वा दिखत डंगाल हे।।
नेता फिरे सेवक बने
पर पहिने गीदड़ खाल हे।
बाली सजे हे कान मा
बिगड़े टुरा के चाल हे।।
करुहा लगे दाई ददा
हितवा बने ससुराल हे।
पात्रे कहय सच बात ला
मिर्ची सही बड़ झाल हे।
इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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