गजल- मनीराम साहू मितान
बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महजूफ़
मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फेलुन
1212 1122 1212 22
रकम रकम के चहुक्का सुनत रथॅव मैं हा।
भविष्य काल का लाही गुनत रथॅव मैं हा।
कभू समझ मा परय नइ बने हे या गिनहा,
घटा बढ़ा के सरेखत चुनत रथॅव मैं हा।
अपन करम के सजा ला रथे भुगतना जी,
करत बिचार मुड़ी ला धुनत रथॅव मैं हा।
करत जुगाड़ अपन के पिसत हवय जिनगी,
नठे नसीब के छानी तुनत रथॅव मैं हा।
कमी सलाह के नइये मिलत रथे अबड़े,
अपन मने के सुपा मा फुनत रथॅव मैं हा।
नवा बिहान हा आही खुशी धरे लाही,
अपन बनाव के सपना बुनत रथॅव मैं हा।
कथे मितान बिना श्रम कभू न पेट भरय,
कमा शरीर घमा के भुनत रथॅव मैं हा।
- मनीराम साहू मितान
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