Total Pageviews

Wednesday 16 September 2020

ग़ज़ल -आशा देशमुख*


*ग़ज़ल -आशा देशमुख*


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

221 2121  1221 212


कतको चले हवा तभो दीया बरत रहे।

साहित गुणी सुजान के कोठी भरत रहे।


कचरा सबो सकेल के आगी मा फूँक दे

भीतर समाय रंग जे इरखा जरत रहे।


गइया बँधाय द्वार मा पंछी मुँडेर मा

सुम्मत सुनाय मंत्र परेवा चरत रहे।


धरती रहे सिंगार मा मुस्कान ओढ़ के

नदिया तलाब खेत के पइयाँ परत रहे।


पुरवा झूले हिंडोलना जंगल औ डोंगरी

सुघ्घर पहाड़ के तरी झरना झरत रहे।


भागीरथी हा तप करें  गंगा ल लाय बर

जीयत मरत नहाय के पुरखा तरत रहे।


रुखवा नदी नहर हवे जिनगी के आसरा

दुनिया के जीव बर सबो फल फूल फरत रहे।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा




No comments:

Post a Comment

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...