गजल-दिलीप कुमार वर्मा
बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ़
मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फेलुन
1212 1122 1212 22
मैं वो सहारा जे जिनगी सँवार देवत हँव।
बहे ते बर बने तिनका उबार देवत हँव।
गरीब जान के मोला ओ देत हे चाँउर।
मैं रोज अद्धि ले बोतल डकार देवत हँव।
गरीबी मा बिके घर खेत मोर पुरखा के।
बचे न खाय के तब ले उधार देवत हँव।
रखे न जेब मे फूटी तभो ले राजा औ।
मँगे जे एक त वोला मे चार देवत हँव।
मैं जानथौं हवे कतकोन झन इहाँ बैरी।
नशा जहाँ चढ़े खुद ही कटार देवत हँव।
रचानाकार-- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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