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Monday, 28 September 2020

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 


बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम 

मुस्तफ़इलुन  मुस्तफ़इलुन

2212   2212 


काकी सुनावत बात हे।

बइठे कका कनवात हे।


लबरा लबारी मार के। 

उल्लू बनाये जात हे। 


घनघोर बादर छाय हे। 

जइसे लगे बरसात हे। 


जब काम हे तब राखथे। 

फिर मार देवत लात हे। 


बेटा हवेली मा रहे। 

माँ बाप कुटिया छात हे। 


तँय साँप ला झन पालबे। 

करथे सखा आघात हे। 


कतको सुरक्षित रख भले। 

ले चोर जावय रात हे। 


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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