ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी
बहरे रमल मुसद्दस सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122
भूख मा कतको मरत हे देखले तँय
कतको अउ कोठी भरत हे देखले तँय
चुप्प ताँकत खड़े रहिगेन हम अउ
हाथ दूनो वो धरत हे देखले तँय
कोन कहिबे इहाँ भाईच भाई
एक दूसर बर जरत हे देखले तँय
देख बेटी ला बढ़त दाई ददा के
आँखी ले आँसू ढ़रत हे देखले तँय
बाप के बेटा सुने नइ 'ज्ञानु' अब तो
अपने मन के बस करत हे देखले तँय
ज्ञानु
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