ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी
बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ
मुफाईलुन फाइलातुन मुफाईलुन फेलुन
1212 1122 1212 22
भटक गे कोनो डगर ता दिखा कभू साहेब
मजाक कखरो इहाँ झन उड़ा कभू साहेब
बिखर जथे घलो परिवार बात छोटे मा
रिसाय कोनो अपन हे मना कभू साहेब
अलग अलग हे अपन राग सब अलापत हे
हवै जे तोर अपन राग ला लमा कभू साहेब
कहूँ गरीब के नइ कर सकस भलाई कुछु
गरीब मन ला इहाँ झन सता कभू साहेब
भले दे झन दवा दाई ददा ला बूढ़त मा
बइठ के रोज इँखर संग गोठिया साहेब
जी घूँट घूँट के झन कीमती हे जिनगी बड़
चलत हे तोर का मन मा जता कभू साहेब
जरूर मन ला खुशी मिलही 'ज्ञानु' हा कहिथे
भुलाय मनखे ला रसता बता कभू साहेब
ज्ञानु
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