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Monday 21 September 2020

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


नयन ला निंदिया घलो नइ सुताय पहली कस।

थके गतर हा रथे नइ कमाय पहली कस।।1


रबड़ हा तनके घलो रूप मा अपन आथे।

तने मनुष हा कभू नइ हो पाय पहली कस।2


का कोठ के घलो अब कान संग आँखी हे।

जिया के बात रहे  नइ लुकाय पहली कस।3


अघाय जिवरा रहय ते ललात हे अभ्भो।

उदर हा फेर कहाँ हे भुखाय पहली कस।4


नवा जमाना मा कुछु भी नवा कहाँ हे देखा।

हे पेंट जींस मा कपड़ा कपाय पहली कस।5


धँधाय हे ददा दाई उड़ाय बेटा हा।

तिरथ बरत कहाँ बेटा कराय पहली कस।6


सरग सही लगे घर गाँव बन डिही डोंगर।

परेवा पड़की कहाँ अब उड़ाय पहली कस।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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