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Saturday, 26 September 2020

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुसद्दस सालिम 

फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन 

2122  2122  2122 


दूर ले भइसा समझ के तीर आगे। 

देख के हाथी बिचारा दूर भागे। 


कोलिहा खुसरे रहय जब शेर माड़ा। 

सब समझथे शेर ला ओ मार खा गे। 


गाँव मा गोरी शहर के एक आये। 

जेन देखय तेन समझय भाग जागे। 


पाय हे पारस बड़ा इतरात हावय।  

सोन खाही रात दिन कस आज लागे


शेर बकरी मास ला नइ खात हावय। 

खून मनखे के लगत ओ स्वाद पागे। 


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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