गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212
अवगुण धरे कोरी उही।
बारत हवै होरी उही।1
मन नइ चले जेखर कभू।
सिरतों म हे खोरी उही।2
जाँगर खताये जेखरे।
सबदिन करे चोरी उही।3
निर्भस दिखे थक हार के।
खोजत हवै डोरी उही।4
मन हे निचट करिया तभो।
कहिलात हे गोरी उही।5
आधा भरे जेमन रथे।
बड़ करथे मुँहजोरी उही।6
कौवा ले करकस हे गला।
गावत हवे लोरी उही।7
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)
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