गजल- दिलीप कुमार वर्मा
बहरे रजज़ मख़बून मरफू मुखल्ला
मुफाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
1212 212 122 1212 212 122
जनम लिए घर मा मोर आये खुशी लुटावय हमार बेटी
चहक उठे घर महक उठे दर जे खिलखिलावय हमार बेटी।
कभू रखे गोद मा सुलावय ददा कका अउ बबा तको हर।
कभू झुलावत हे दाई पलना त मुस्कुरावय हमार बेटी।
कभू अँगन मा ठुमक चलत हे कभू गली मा तको निकल जय।
छमक-छमक छम बजे पजनिया बने बजावय हमार बेटी।
पढ़े लिखे के समे ह आगे चलव पढाबो ग चेत करके।
लिखे पढ़े मा सदा हे अउवल इनाम पावय हमार बेटी।
उड़े कभू मन अकाश चाहय उड़ा सके नइ जमाना डर के।
नजर गड़ाये रहे शिकारी कहाँ उड़ावय हमार बेटी।
बिहा करे के करव न जल्दी अभी समे हे तनिक ठहर जव।
अभी जमाना ल हे दिखाना का कर दिखावय हमार बेटी।
कका ले काकी बबा ले दादी ममा ले मामी नता कहाये।
ददा ले दाई बिहाय भौजी नता निभावय हमार बेटी।
रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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