गज़ल- अजय "अमॄतांशु"
*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
*2122 2122 2122*
काम सिरतो कब भलाई के करे हस।
का कभू कखरो बता दुख ला हरे हस।
सीखबे तँउरे ल अब कइसे बता तैं।
बूड़ जाहूँ पानी मा तैंहा डरे हस।
कर भला के काम सँग मा जाही येहा।
मोह मा दौलत के काबर तैं परे हस।
होवै जिनगी मा उजाला सोंचथस तैं।
दीया बनके ककरो जिनगी मा बरे हस।
कइसे उठही बेटी के डोली दुबारा।
एक घव दाहिज के आगी मा जरे हस।
टूटही काबर मितानी गोठ सुन ले।
बात काँही नोहे काबर तैं धरे हस।
जनता करही माफ कइसे तोर करनी।
बनके गोल्लर देश ला अड़बड़ चरे हस।
अजय अमॄतांशु, भाटापारा
🙏
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