छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*
मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)
*1212 1122 1212 22*
बता तिहीं बिना काँटा गुलाब का आही।
गरीब घर खुशी धरके सहाब का आही।1
मँझोत मा हे कुवाँ अउ पिछोत खाई हे।
तिहीं बता तो समय अउ खराब का आही।2
हमर ठिहा मा खुशी आही बस फकत कहिथो।
सवाल हे अभो जसतस जवाब का आही।3
दिखे फसल भरे सावन मा बड़ दुबर पातर।
समय गँवाही ता फिर से शबाब का आही।4
छुपात मुँह ला फिरत रह जतर जतर कतको।
छुपाय चाल चरित ला नकाब का आही।5
मया पिरीत के धारा बहाय महतारी।
पिरीत के बता वोला हिसाब का आही।6
कभू इती ता कभू ओती बस भटकथे मन।
बताय बर बने रद्दा किताब का आही।7
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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