छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*
मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)
*1212 1122 1212 22*
उघारे नैन जे रेंगें झपाय ना कभ्भू।
कुँवा जे पानी ला देवे पटाय ना कभ्भू।
उदर के आग घलो तो बुझाय खाये मा।
भुखाये जौन हे मनके अघाय ना कभ्भू।
पढ़े गढ़े बिना गुण ज्ञान मान का पाबे।
मिले का घीव दही तो जमाय ना कभ्भू।
मनुष हरे जभे खाही तभे तो गुण गाही।
कुकुर घलो बिना रोटी के आय ना कभ्भू।
परे हे चाल मा कीरा सबे ला देय ओ पीरा।
जी काखरो बने मनखे जलाय ना कभ्भू।
अपन गियान ला देखात अधभरा फिरथे।
भरे के शोर भी चिटिको सुनाय ना कभ्भू।
असाढ़ मा कुँवा तरिया उबुक चुबुक करथे।
समुंद कोनो घड़ी अकबकाय ना कभ्भू।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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