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Thursday 24 September 2020

गज़ल- अजय अमृतांशु

 गज़ल- अजय अमृतांशु


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


बाढ़ मा खेती सरे दाना कहाँ हे।

भूख मा मनखे मरत खाना कहाँ हे।


पेट के खातिर चलत पैदल उमन हा।

फेर उन ला नइ पता जाना कहाँ हे।


सिधवा पेरावत हवय जी कोर्ट मा अब।

दोषी होगे हे बरी थाना कहाँ हे।


रुपिया अउ डॉलर के हावय अब जमाना।

अब नँदागे कौड़ी अउ आना कहाँ हे।


जब भलाई काम के ठाने हवस तैं।

सोंच ले खोना हवय पाना कहाँ हे।


छोड़ के परदेस गे हे मोर जोही।

हे उदासी मन हा मस्ताना कहाँ हे


राग वइसन अब कहाँ मिलथे "अजय"जी। 

गीत सुग्घर नइ मिलय गाना कहाँ हे।


अजय अमृतांशु,भाटापारा

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