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Sunday, 10 January 2021

ग़ज़ल -आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल -आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़*


*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*1212 1212 1212 1212*



लगे हे आजकल सबो ल रोग हा छपास के।

हज़ार भर खरच करे न दाम सौ पचास के।


धरे कलम दवात ला रँगाय पृष्ठ ला बने

दिखे न काव्य छंद रस न गुण धरे समास के।


बड़े बड़े खनाय खोचका सही हवय डगर

खबर गजट निकालथे गली सड़क विकास के।


नदी तलाब हे पटात बोर छाय सब कती

शराब नीर सँग बिसाय दाम हे गिलास के।


लगाय बीज स्वार्थ के मया नता करू करू

कहूँ करा दिखे न कंद मूल फल मिठास के।


अँधेर  बाढ़गे अतिक लजाय रात हा घलो

सुरुज तको गुनत रहे का मंत्र हे उजास के।


सबो डहर उड़ाय धूल बड़ रिसाय हे हवा

डरात मन तभो कहे दिया जला ले आस के।


आशा देशमुख

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