*ग़ज़ल -आशा देशमुख*
*बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़*
*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*
*1212 1212 1212 1212*
बसे बसाय गाँव छोड़ के चले कमाय बर
मया तियाग के चले हे देवता मनाय बर।
अहम धरे जलन हवय लड़ात हे इहाँ उहाँ
जहर भराय मीठ बोल आग ला लगाय बर।
दिखात शान हे अबड़ नही हे घर म फोकला
उधार के सबो जिनीस जिंदगी चलाय बर।
कभू दया धरम धरे नही कभू रखे मया
सनाय हाथ खून जाय तीर्थ मा नहाय बर।
भराय ला भरत हवे ग राज पाट झूठ के
गिरे पड़े हवे गरीब कोन हे उठाय बर।
आशा देशमुख
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