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Saturday 9 January 2021

गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम*


*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन*


*1222 1222 1222*


झुले नइ कान में बाला सहीं काबर।

गला मा नइ हवे माला सहीं काबर।


उड़न दे पाँख फैलाके जगाके आस।

मया ला रोकथस ताला सहीं काबर।


जिया ला जीत गुरतुर बात तैं कहिके।

जिया ला  गोभथस भाला सहीं काबर।


बढ़े बाँटे मया ये जानथन तभ्भो।

मया ला बाँटथस लाला सहीं काबर।


पियासे के बुझावत प्यास बढ चल तैं।

नदी होके रथस नाला सहीं काबर।


हरे कहिथस अटारी पोगरी तोरे।

ठिहा मोरे धरमशाला सहीं काबर।


हरँव छत्तीगढ़िया मैं सबे ले अँव रे बढ़िया मैं।

बुनत रहिथस भरम जाला सहीं काबर।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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