गजल- दिलीप कुमार वर्मा
बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222
नदी के पार मा डेरा बनाये हँव।
मनाये बर बहुत दुरिहा ले आये हँव।
पहाड़ी डोंगरी जंगल नदी नरवा।
बहुत खोजे हवँव तोला त पाये हँव।
बछर भर सुध तको बेसुध रहिस हावय।
मिले तँय आज मोला तब नहाये हँव।
नदी आये रहे काली नहाये बर।
अभी तँय आ जबे मँय सुध लमाये हँव।
बिहा के लेगहूँ तोला अभी संगी।
कका दाई ददा ला मँय बलाये हँव।
बिना मँय तोर वापस घर कहाँ जाहूँ।
भले मरहूँ कसम मँय तोर खाये हँव।
दया कर के मया कर ले गड़ी तँय हर।
भरोसा तोर कर जिनगी बिताये हँव।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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