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Friday, 1 January 2021

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन 

1222  1222  1222  


नवा ये साल मा कुछ भी नवा नइ हे। 

करोना के अभी तक तो दवा नइ हे। 


बिहिनिया मा उही सूरज उही पानी। 

अभी भी देख ले ताजा हवा नइ हे। 


उही घर खाट कुरिया खोर अउ तरिया।  

बदल जय भाग मोरो रोठवा नइ हे।


डगर उरभट रहे कल तक हवय अब भी। 

कहूँ तँय रेंग रसता सोझवा नइ हे। 


लड़े कल आज अउ कल भी सगे भाई। 

सुधर जय लोग अतका जोजवा नइ हे। 


नवा हे मोर बर सच मा कलेंडर हर। 

लटक रहिथे मगर मुँह बोलवा नइ हे। 


कटावत हे अभी भी पेंड़ जंगल के। 

थमे टँगिया कहाँ जब भोथवा नइ हे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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