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Friday, 8 January 2021

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़

मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


1212 1212 1212 1212


ददा कका बबा सबो रखे हवे ग आस हे। 

टुरी दिखाय जेन ला कहे टुरा कि पास हे। 


तलास मा खपत हवय शरीर हा सियान के।

उमर बढ़े बहुत हवय मिले नही हताश हे। 


टुरा मगर कहाँ कहे रखे हवय जे चाह ला। 

बताय कब करीना अस टुरी मिले त रास हे। 


जवान के विचार ला बबा कहाँ समझ सके। 

बिहाय दिस हवय तहाँ टुरा बहुत उदास हे। 


हवे ग फूल एक ठन  हजार भौरा आय हे। 

लड़े मरे अगर कहूँ समझ तहाँ विनाश हे।  


रहे जे भाग मा मिले उदास हो लड़व नही। 

सँवार लव ये जिंदगी समझ जहू का खास हे। 


लगे भले पहाड़ कस कभू-कभू ये जिंदगी।  

'दिलीप' चल बिना रुके कहाँ पहाड़ उचास हे।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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