गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
*बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़*
*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*
*1212 1212 1212 1212*
कहाँ दिखत हे रोजगार देश जन विकास हा।
मरत हे आम जनता अउ बढ़त हे भूख प्यास हा।
सजे हे राजनीति मंच चमचा अउ दलाल के
करे गुलामी चाटुकार अंधभक्त दास हा।
कहाँ ले राम राज के खुवाब पूरा होय जी
फँसे गला जिहाँ हे जाति पाति धर्म फाँस हा।
युवा किसान दीन अउ गरीब के पुकार हे
मिले सबो ला रोटी सुख मिटे जुलुम के त्रास हा।
रखौ सुमत समानता ला गोठ सत्यबोध के
मिटे कभू ना काकरो बसे मया के आस हा।
इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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