ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी
बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब मकफूफ
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईन फ़ाइलुन
221 2121 1221 212
करजा अपन उतार ले जीते जियत इहाँ
जिनगी सुघर सवाँर ले जीते जियत इहाँ
कहिथे बने रिहिस हे मरे बाद लोग मन
आदत अपन सुधार ले जीते जियत इहाँ
बेटा बहू ह तोर कतक सुनथे बात ला
हर रोज तँय पुकार ले जीते जियत इहाँ
मनखे ल सिरतो देथे बना लाश ये सही
दुख पीरा ला बिसार ले जीते जियत इहाँ
कुछ काम 'ज्ञानु' आय नही पद महल पहुँच
मद लोभ मोह टार ले जीते जियत इहाँ
ज्ञानु
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