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Thursday, 23 July 2020

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

उठा ले पाँव नेकी बर जहां मा नाम हो जाही ।
जतन माँ बाप के कर ले इँहे प्रभु धाम हो जाही ।।

सियासत देश के तो आज बिगड़े हे बहुत प्यारे ।
कहूँ तैं बोलबे सच न्याय कत्लेआम हो जाही ।।

बढ़े हे खूब महँगाई बता कइसे चलाबो घर ।
लगत हे धान ले ज्यादा सबो के दाम हो जाही ।।

धरे टँगिया तहूँ हा रोज काटत पेड़ काबर हस ।
सुवारथ आज के ये तोर कल दुख घाम हो जाही ।।

सबो ला नौकरी चाही इँहा बस आज सरकारी ।
बढ़त बेरोजगारी मा युवा नाकाम हो जाही ।।

बिता ले चार पल हँसके मया परिवार मा तैं तो ।
फिकर चिंता करे ला छोड़ जिनगी जाम हो जाही ।।

बराबर एक सब ला मान पात्रे हे कहत सुन लौ ।
तहाँ सब सिक्ख ईसाई सबो गुरु राम हो जाही ।।

गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध "
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

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