छ्त्तीसगढ़ी गजल -ज्ञानु
221-1222-221-1222
मद लोभ अहम हिरदै मा पाल रखे काबर
भर जेब अपन रे भाई जंजाल रखे काबर
बड़ भाग मिलें ये काया मोल कहाँ जाने
शैतान सही रे बिगड़े चाल रखे काबर
तँय खूब कमाये धन रे नइ भाव भजन जाने
जें काम कभू नइ आवय वो माल रखे काबर
सिगरेट तँमाखू दारू रोज पिथस कसके
तँय हाथ अपन रे दुश्मन काल रखे काबर
नइ 'ज्ञानु' करे बस पीटत रोज ढिंढोरा रे
कुछु काम न कौड़ी के बदहाल रखे काबर
ज्ञानुदास मानिकपुरी
221-1222-221-1222
मद लोभ अहम हिरदै मा पाल रखे काबर
भर जेब अपन रे भाई जंजाल रखे काबर
बड़ भाग मिलें ये काया मोल कहाँ जाने
शैतान सही रे बिगड़े चाल रखे काबर
तँय खूब कमाये धन रे नइ भाव भजन जाने
जें काम कभू नइ आवय वो माल रखे काबर
सिगरेट तँमाखू दारू रोज पिथस कसके
तँय हाथ अपन रे दुश्मन काल रखे काबर
नइ 'ज्ञानु' करे बस पीटत रोज ढिंढोरा रे
कुछु काम न कौड़ी के बदहाल रखे काबर
ज्ञानुदास मानिकपुरी
बहुत सुन्दर ग़ज़ल सर। सादर बधाई
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