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Friday 17 July 2020

छ्त्तीसगढ़ी गजल -ज्ञानु

छ्त्तीसगढ़ी गजल -ज्ञानु
221-1222-221-1222

मद लोभ अहम हिरदै मा पाल रखे काबर
भर जेब अपन रे भाई जंजाल रखे काबर

बड़ भाग मिलें ये काया मोल कहाँ जाने
शैतान सही रे बिगड़े चाल रखे काबर

तँय खूब कमाये धन रे नइ भाव भजन जाने
जें काम कभू नइ आवय वो माल रखे काबर

सिगरेट तँमाखू दारू रोज पिथस कसके
तँय हाथ अपन रे दुश्मन काल रखे काबर

नइ  'ज्ञानु' करे बस पीटत रोज ढिंढोरा रे
कुछु काम न कौड़ी के बदहाल रखे काबर

ज्ञानुदास मानिकपुरी

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर ग़ज़ल सर। सादर बधाई

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