Total Pageviews

Saturday, 11 July 2020

ग़ज़ल-ज्ञानु

ग़ज़ल-ज्ञानु

बहरे मुतकारिक मुसम्मन अहज़जु  आख़िर
फाइलुन फाइलुन फाइलुन फ़ा
212 212 212 2

बात का हे बता संगवारी
मन मा झन तँय लुका संगवारी

दुक्ख सुख तो लगे जिनगी भर हे
आँसू झन तँय बहा संगवारी

रोय मा होय हासिल नही कुछ
आस मन मा जगा संगवारी

देख काँटा डरा झन जबे तँय
पाँव आगू बढ़ा संगवारी

जाय मिल कोनो भटके कहू ता
रसता ओला दिखा संगवारी

कतको लइका ला दे रोज सुविधा
फेर सुग्घर पढ़ा संगवारी

तोर बड़ भाग पाये मनुज तन
हाँस के दिन पहा संगवारी

हाथ जोड़े करे 'ज्ञानु' बिनती
बैर मन ले हटा संगवारी

ज्ञानु

No comments:

Post a Comment

गजल

 गजल 2122 2122 2122 पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खा...